लेखनी प्रतियोगिता -24-Jan-2022
सूखे दरख़्त भी खड़े रहते हैं,
कई दिनों तक एक नज़र की आस लिए।
जो सींच देगा उन्हें अपनेपन से,
देगा खाद और मिट्टी प्रेम से भरी,
और लहरा सकेंगे वो अपनी शाखाएँ फिर,
अनगिनत फूलों और फलों से भरी।
इसी इंतजार में ठंडे पड़ जाते हैं एक दिन,
और तब्दील हो जाते हैं टुकड़ों में,
उठा लिए जाते हैं यही टुकड़े
और जलाये जाते हैं सर्द रातों में।
ठीक वैसे ही जैसे
कोई हँसता खिलखिलाता आदमी,
एक दिन अचानक चुप हो जाता है,
और लोग उस दिन कहते नही थकते,
जाने क्या हुआ होगा, पर आदमी अच्छा था।
Sandeep Kumar Mehrotra
25-Jan-2022 10:31 PM
बहुत खूब
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Suchita
25-Jan-2022 10:54 PM
Dhanyawad
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Sudhanshu pabdey
25-Jan-2022 12:17 PM
Very nice 👌
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Suchita
25-Jan-2022 07:40 PM
शुक्रिया
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Shrishti pandey
25-Jan-2022 08:43 AM
Nice
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Suchita
25-Jan-2022 07:41 PM
शुक्रिया
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